परम शान्ति किसे नहीं चाहिए? सभी तो अशांत हैं, बेचैन हैं, व्याकुल हैं, दुखियारे हैं। किसी को इस बात का दुख है तो किसी को उस बात का दुख। आज एक बात का दुख है तो कल दूसरी बात का। संसार के सारे लोग दुख-संतत हैं।
इन दुखो से बहार कैसे आये? उन दुखो से छुटकारा कैसे पायें? सही अर्थ में सुख- शान्ति का जीवन कैसे जी सके?
हमारे देश के ऋषियो ने, मुनियो ने इसी बात की खोज की कि दुखो से छुटकारा कैसे मिले? सही अर्थ में सुख शांती कैसे प्राप्त हो?
सभी एक ही परिणाम पे पहुचे की बिना हरिभजन के सुख शान्ति नहीं मिल सकती।सबने अपने अपने अनुभव के आधार पर मानव के दुःख और क्लेश मिटाने के उपाय बताये। भगवान् शिवजी ने उमा से कहा:-
” उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना।
सत हरी भजन जगत सब सपना।।”
उत्तरकाण्ड में काक्भूसुंडि जी भी कहते हैं:-
” निज अनुभव अब कहऊँ खगेशा।
बिनु हरी भजन न जाहिं कलेषा।।”
भगवान् को चन्दन पुष्प अर्पण करना, मात्र इतने में कोई भक्ति पूर्ण नहीं होती, यह तो एक भक्ति की प्रक्रिया मात्र है। भक्ति से तो उसका प्रत्येक व्यवहार भक्तिमय बन जाता है।
मानव भक्ति तो करता है किन्तु व्यवहार शुद्ध नहीं करता। जिसका व्यवहार शुद्ध नहीं है, वह मंदिर में भी भजन नहीं कर सकता।।
लेकिन जिसका व्यवहार शुद्ध है वह जहा बैठा है वही भजन होता है और वहीँ उसका मंदिर है।
प्रभु का नाम स्मरण करते करते घर का काम करो तो वह भी भक्ति है।’ यह घर ठाकुर जी का है घर में कचरा रहेगा तो ठाकुर जी नाराज़ होंगे।’ ऐसा मानकर झाड़ू देना भी भक्ति है।
मेरे प्रभु मेरे हिर्दय में विराजमान है उन्हें भूख लगी है ऐसी भावना से किया हुआ भोजन भी भजन है।
यदि हमारी दिनचर्या के व्यवहार में भगवान् की भक्ति का रंग एक बार भी चढ़ गया तो हमारे जीवन के क्लेश एवं तनाव सब दूर हो जायेंगे- ऐसा दृढ विस्वास है।
।। जय श्री राम ।।