आगे चलते हुए साथ में चलना’ यह मुहावरा नेतृत्व करने वालों के लिए बड़े काम का है, चाहे बात उल्टी लगती है। यह किष्किंधा कांड से उस प्रसंग का यह मुहावरा समझें, जिसमें अंतर्गत सीताजी की खोज में निकले वानर प्यास से परेशान हो गए थे। लेकिन हनुमानजी को लगा कि वानर प्यास से व्याकुल होने से प्राण तोड़ देंगे।
तभी उन्होंने एक ऊंचे स्थान पर चढ़कर दृष्टि डाली तो उन्हें कुछ पक्षी एक गुफा में जाते दिखे और वे समझ गए कि जरुर वहां पानी होगा। तभी सारे वानरों को वहां ले गए। और दल का नेतृत्व अंगद कर रहे थे, लेकिन अंगद गुफा में जाने से इनकार कर दिया। फिर सभी हनुमानजी की ओर देखने लगे। जब वानर रामजी से विदा लेकर निकले थे तब सभी अति-उत्साह में थे और सभी हनुमानजी आगे आगे चल रहे थे और हनुमान जी सबसे पीछे आ रहे थे, लेकिन जब परेशानी आई तो उन्हें आगे कर दिया गया। किसी की परेशानी कम करना, परेशानी में फंसे लोगों की सहायता करना हनुमानजी का स्वभाव मै है। ‘आगें कै हनुमंतहि लीन्हा। पैठे बिबर बिलंबु न कीन्हा।।’ यहां एक शब्द है- ‘विलंबु न कीन्हा।
हनुमानजी ने नेतृत्व संभालते हुए बिना किसी देरी किए सभी वानरों को गुफा के अन्दर ले जाने की व्यवस्था बनाई। जब आप किसी का नेतृत्व कर रहे हों तो आगे चलते हुए भी साथ रहना रहना चाहिए। और यह गुण हमारे अन्दर भी होना चाहिए। भले ही हम परिवार का नेतृत्व कर रहे हों, या समाज का या व्यवसाय में किसी दल का। भले ही आगे आपको चलना है परंतु अपने साथ वालों को यह अहसास कराएं कि हम उनके साथ ही चल रहे हैं। क्योकि यह अहंकार हीनता के लक्षण हैं और हनुमानजी की यही विशेषता थी वो कभी भी बिना विलंब किए आगे रहते हुए अहंकार न रखें। ध्यान रहे जिस दिन यह गुण किसी के अन्दर उतरता है, नेतृत्व के मतलब बदल जाते हैं।