जब भी हम किसी कार्य में सफल होना है तो उसके लिए कुछ शर्तें होती हैं, जिनको पूरा करने पर ही हम एक निश्चित लक्ष्य तक पहुंच सकता है। लेकिन यदि अगर हमारे सामने शर्तें न होती तो हर कोई, हर काम में आसानी से सफल हो जाता। ऐसा इसलिए नहीं होता, क्योंकि परमात्मा (भगवान) ने हर मनोकामना या सिद्धि प्राप्त करने के लिए कुछ शर्तें तय की हैं, जिससे उन शर्तों का पालन करने पर ही हमे सफलता मिल सकती है। क्या हैं पढ़िए ये हैं वो दो जरूरी शर्तें हैं- स्थिर चित्त और अटूट श्रद्धा।
स्थिर चित्त
स्थिर चित्त को चारों ओर से समेट कर एकाग्रता पूर्वक साधना में लगा देना चाहिए। जिस तरह बिखरी हुई बारूद को जला देने से वह एकदम (भक्) से जल जाती है जिससे उसकी शक्ति समाप्त हो जाती है, परन्तु यदि उसी बारूद को बंदूक की एक छोटी नाली में डालकर एक ही दिशा में जलाया जाय तो भयंकर आवाज करती है और जहां चलाई जाती है, वहां घातक परिणाम देती है।
जिस तरह थोड़ी-सी जगह में बिखरी हुई सूर्य की किरणें कोई विशेष काम नहीं करती हैं, लेकिन जब उन्हें आतिशी कांच द्वारा एक स्थान पर केंद्रित कर दिया जाता है तो वे अग्नि उत्पन्न कर देती हैं। ठीक
इसी प्रकार एकाग्रचित्त से की गयी साधना शुभ फल अवश्य प्रदान करती हैं, लेकिन यदि अस्थिर मन से साधना की जाए तो प्रयत्न उतना अधिक लाभ प्राप्त नहीं होता पाता है। इसीलिए स्थिर चित्त होना हमारी साधना और सफलता के लिए पहली शर्त है।
अटूट श्रद्धा
हमेसा वस्तु की महत्ता एवं श्रेष्ठता में विश्वास होना जरुरी है, क्योकि उसके प्रति मन में भक्ति, प्रीति एवं समीपता की आकांक्षा होने को ही हम श्रद्धा कहते हैं। गायत्री परमात्मा की साक्षात् शक्ति हैं, उसकी आराधना से निश्चित रूप से दैवीय कृपा प्राप्त होती है। और इससे प्राणी के आत्मिक और भौतिक आनन्दों का मार्ग खुल जाता है।