श्याम तेरी तस्वीर सिरहाने रख कर सोते हैं,
यही सोच कर अपने दोनों नैण भिगोते हैं।
कभी तो तस्वीर से निकलोगे,
कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे।।
नन्हे नन्हे हाथों से आकर मुझे हिलाएगा,
फिर भी नींद न टूटे तो मुरली मधुर बजाएगा।
जाने कब आ जाये, हम रुक-रुक कर रोते हैं,
यही सोच कर अपने दोनों नैण भिगोते हैं।।
अपनापन हो अंखियों में होठों पे मुस्कान हो,
ऐसा मिलना जैसे की जन्मों की पहचान हो।
इसके खातिर अंखिया मसल-मसल कर रोते हैं,
यही सोच कर अपने दोनों नैण भिगोते हैं।।
कभी-कभी घबराए क्या हम इसके हकदार हैं,
जितना मुझको प्यार है, क्या तुमको भी प्यार है।
यही सोच के करवट बदल बदल कर रोते हैं,
यही सोच कर अपने दोनों नैण भिगोते हैं।।
इक दिन ऐसी नींद खुले जब तेरा दीदार हो,
“बनवारी” फिर हो जाए यह आँखियाँ बेकार हो।
बस इस दिन के खातिर हम तो दिन-भर रोते हैं,
यही सोच कर अपने दोनों नैण भिगोते हैं।।
(पुनरावृत्ति:)
श्याम तेरी तस्वीर सिरहाने रख कर सोते हैं,
यही सोच कर अपने दोनों नैण भिगोते हैं।
कभी तो तस्वीर से निकलोगे,
कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे।।
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