इन सब कारणों की बजह से आज कल के युवा ठीक से काम नहीं कर पाते हैं

कभी भी विपरीत परिस्थितियों में अपना आत्मविश्वास को न छोड़ें। मदद तो दूसरे लोग भी करेंगे ही, लेकिन खुद पर किए गए विश्वास में, सबसे  बड़ी ताकत होती है। आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है। तो चलिए, आज इस पर विचार करते हैं  कि यह आत्मविश्वास आता कहां से है। आत्मविश्वास हमारे ही भीतर का बाय-प्रोडक्ट है। और अगर दूसरे से मिलता है तो हम भेंट में ले लेते हैं । इसका सीधा संबंध मस्तिष्क से है। हमारे भीतर एक मन है, दूसरा हृदय है और तीसरा मस्तिष्क है। जब भी हम कोई काम करते हैं, तो हमारे शरीर के अलावा, अन्दर ये तीन चीजें भी सक्रिय हो जाती हैं। और तीनों की सक्रियता से ही शरीर के अंग रिएक्ट करने लगते हैं। आत्मविश्वास का सीधा संबंध मस्तिष्क से है।

जिस तरह मन हमेशा कारण ढूंढ़ता रहता है, वैसे ही मस्तिष्क निदान निकालने में सक्रिय हो जाता  है। मन का मूल स्वभाव नकारात्मकता  है। ये गलत बातों को जल्दी पसंद करता हैं। मस्तिष्क में बुद्धि क्रियाशील होती है। अत: यहां सकारात्मकता रहने की संभावना अधिक पायी जाती है। यदि मस्तिष्क पर थोड़ा काम किया जाए तो मन की गलत बातों को बुद्धि स्वच्छ कर देती है।

मस्तिष्क आत्मविश्वास को जन्म देता है। मन हमें दूसरी बातों में इतना व्यस्त कर देता है कि हम भूल ही जाते हैं कि हमारे भीतर ही खुशी भी है। जितना हम मन को निष्क्रिय करते हैं , उतना ही मस्तिष्क पर काम कर सकेंगे। जैसे ही मन निष्क्रिय होता है मस्तिष्क भीतर भरी खुशी को पकड़ लेता है। और  मस्तिष्क को मौका दीजिए वह ढूढ़ ढूढ़ कर खुशियां हमें देगा।

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