हमेसा शतरंज के खेल में जो भी पहली चाल चलता है, उसका पलड़ा हमेसा विरोधी पर भारी पड़ता है? ठीक उसी तरह जीवन के खेल में भी हमें पहला कदम उठाना फायदेमंद होता है। मेल-मिलाप और संबंधों के लिए पहला कदम बढ़ाना उदारता और परिपक्वता का संकेत है। वह पहला कदम उठाने के लिए साहस की जरूरत होती है। ऐसा करने में कभी भी हिचकिचाए नहीं। बाद में जब आपको अपनी गलती महसूस होगी तो हो सकता है कि बहुत देर हो चुकी होगी।
मुंबई में उस दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी। और मैं उस समय अपना वेडिंग एलबम देख रही थी। एक फोटोग्राफ ने मुझे गहराई से छू लिया था। यह फोटोग्राफ मेरी सहेली अनुपम और उसके पति रावत का था। दोनों ने खुस होकर अपनी तस्वीर खिंचवाई थी। मुझे कुछ महीनों पहले अनुपम का फोन आया था। संध्या ने मुझे बताया था कि उसके और पति के बीच कॅरिअर को लेकर बहस हो गई और अब वह अपने पति से अलग रह रही थी।
अनुपम और रावत एक साल तक बहुत अच्छे दंपती रहे। इस वजह से इस खबर ने मुझे बेचैन कर दिया।
मैंने उससे पूछा था, ‘क्या मामला इतना गंभीर हो गया है कि तुम दोनों को अलग हो जाना चाहिए? क्या तुममें से कोई समझौते के लिए पहल नहीं कर सकता?’ उसका जवाब था, ‘तुम जो कह रही हो, वह संभव है। लेकिन पहल उसे कर लेने दो। मैं ही क्यों करूं? वैसे भी मैं तो सही ही हूं, इसलिए उनको ही पहल करनी चाहिए।’
इस बात को छह महीने हो चुके थे और दोनों अलग-अलग रहते थे। मुझे लगता है कि रावत भी अनुपम की पहल का इंतजार कर रहा होगा। मैं इस बात से निराश थी कि दोनों को जिस बात ने बांधकर रखा था, अब वे अपने उस मूल्यवान रिश्ते को गंवा रहे हैं।
क्या आप भी ऐसा सोचते हो की पहल करने से इनकार करने से बहुत अच्छे रिश्ते भी खराब हो सकते हैं?
चुकि मतभेद तो हर रिश्ते का अहम हिस्सा होते हैं। फिर चाहे वह रिश्ता पति-पत्नी का हो या बाप-बेटे या भाई-बहन या दोस्तों का। जब दो जुड़वां बच्चों के हाथों की लकीरें एक-सी नहीं होती हैं तो क्या आप यह उम्मीद कर सकते हैं कि दो व्यक्तियों की भावनाएं और विचार एक जैसे होंगे। विचारों का टकराव तो अब जैसे रोजमर्रा की बात होकर रह गई है।
- हमारे में से ज्यादातर लोग साधु नहीं है। हम अपनी भावनाओं की कृपा पर आश्रित रहते हैं। जैसे- झुंझलाहट, खासकर गुस्सा, इत्यादि। बाकी शब्दों को न ही बोलें तो ही अच्छा है। कई साल पहले हुई घटनाओं का संदर्भ भी एक-दूसरे को आहत करता है। इससे दिल में कुछ दाग बिना उपचार के ही रह जाते हैं।
- हम, कभी भी तथाकथित सभ्य लोग शारीरिक हिंसा नहीं करते, लेकिन उससे भी खतरनाक युद्ध में सक्रिय रहते हैं और सालों तक पोषण देकर पाली-पोसी आपकी रिश्तेदारी कुछ ही सेकंड्स में खत्म हो जाती है। यह बेहद ही तुच्छ स्थिति हमें प्लेग की तरह अपनी चपेट में ले लेती है। जो हमारे दिल और दिमाग को खाती जाती है। हमारे दिमाग में जाकर बैठ जाती है अनपेक्षित समय पर बाहर निकलती है। कितनी ही बार हम ऑफिस में बैठकर हमारे प्रियजनों से हुई बहस को याद करते हैं और सोचते हैं, ‘वह मुझसे ऐसे कैसे बोल सकती है? मैंने उसके लिए इतना किया, वह यह कैसे भूल सकती है?’ आखिरकार हम ये क्यों नहीं सोचते हैं की दिन हमारा ही ख़राब होता है। और कभी कभी हम अपने गुससे को दूसरो पर उतार देते और उस बात पर सामने बाला कुछ भी गलत प्रतिक्रिया दे देता ह तो हम और घायल दिल, कुम्हलाई भावनाएं, टूटा-फूटा आत्मविश्वास और खरोंच वाला व्यक्तित्व अपना लेते हैं।
आखिरकार दोनों ही नजरिए एक ही नतीजे की ओर बढ़ते हैं यह सिलसिला कई दिनों तक जारी रहता है। हर कोई दूसरे को रास्ता देने से इनकार करता है। कुछ घरों में तो यह सम्मान का प्रश्न बन जाता है। यह घोषित करने की ताकत भी कि ‘मेरे पिता और मैंने कई महीनों तक बाद नहीं की थी।’ आम तौर पर संयम न दिखाने वाला व्यक्ति भी दूसरे की माफी सुनने के लिए लंबा संयम दिखाता है।
शांति के लिए पहल करने से हमें कौन रोकता है? ईगो! मेरे लिए ईगो का मतलब है अहंकार और अक्खड़पन का साथ-साथ होना। ईगो हमारी आंखों पर परदा डाल देता है, जो हमें हमारे बनाए ऊंचे स्थान से उतरने नहीं देता। और हम आपने आप को कमजोर समझने लगते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है हार की स्वीकारोक्ति, आत्मसम्मान को झटका, हीनता की पुष्टि होती है। यह एक कम्पीटिशन बन जाता है कि देखते हैं कौन घुटनों पर आता है? क्या इसमें कोई आश्चर्य है कि बहुत ही बकवास विषयों पर भी परिवारों में लंबी-चौड़ी बहस हो जाया करती है। बात रिश्ते टुटने तक आ जाती है
कुछ क्षणों के लिए ठहरे। आसान शब्द है- ‘आई एम सॉरी; विवाद को यहीं दफना दो; छोड़ो भी, भूल जाओ सब कुछ; मैंने बेवकूफी कर दी थी’, आदि बैरियर तोड़ सकते हैं। तबाही बचा सकते हैं। कड़े दिल को भी पिघला सकते हैं। मुद्दा कितना बड़ा था, यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि हम रिश्ते को कितना महत्व देते हैं, यह समझना बहुत जरूरी है। ज्यादातर हम अपने आपको ही बहुत ज्यादा महत्व देते हैं। और बहीं रिश्ते मै खटास आ जाती है।
इस प्रक्रिया में मूल्यवान रिश्ता गंवा देते हैं। शतरंज के खेल में जो व्यक्ति पहली चाल चलता है, उसका पलड़ा विरोधी पर भारी रहता है? इसी तरह जिंदगी के खेल में भी पहला कदम उठाना फायदेमंद होता है। मेल-मिलाप के लिए पहला कदम बढ़ाना उदारता और परिपक्वता का संकेत है। वह पहला कदम उठाने के लिए साहस की जरूरत होती है। और ऐसा करने में हिचकिचाए नहीं। बल्कि बाद में जब आपको अपनी गलती महसूस होगी तो हो सकता है कि बहुत देर हो चुकी होगी इसलिये हमेसा अपने रिश्ते को अपने से बढ़कर समजें और रिश्ते को मजबूत बनाएं ।
विलियम पेन ने भी कहा है कि-
‘मैं इस दुनिया से गुजर जाऊंगा लेकिन एक बार कोई भी अच्छा काम, जो मैं कर सकता हूं,
या कोई भी दयालुता जो मैं किसी भी मनुष्य के प्रति दिखा सकता हूं,
मुझे वह करने दो,
मुझे इसकी अनदेखी करने मत दो,
क्योंकि मैं इस रास्ते पर फिर कभी नहीं आउंगा।’
जो लोग हमारे अच्छे-बुरे दिनों में हमारे साथ रहे, उनके सामने झुकना इतना मुश्किल नहीं है।
तो इन मतभेदों को हम आपसी समझदारी से दूर कर सकते हैं, लेकिन हमें अपने दिमाग और दिल में भूल जाने और माफ करने के पहलू को भी रखना होगा। मैं सिर्फ उम्मीद कर सकती हूं कि अनुपम और रावत यह सब समझेंगे। गलत आदर्शों से भरे इस समाज में हमें गुस्सा हमें ईगो जैसी भावनाओं से उबरकर मजबूत रिश्तों को बनाने की दिशा में पहल करनी होगी। जड़ों को मजबूत बनाना होगा, जो मुश्किल वक्त में भी जमीन से नाता जोड़े रखे। वह चाबी खोज निकाले, जो अधिक उद्देश्यपूर्ण भविष्य की ओर ले जाए।