एक बार एक ट्रेन जो दिल्ली से कानपुर जा रही थी. उस ट्रेन के फर्स्ट क्लास AC में दो लोग, एक नवयुवक और एक बुजुर्ग यात्रा कर रहे थे . नवयुवक की नज़र बहुत देर से सामने बैठे बुजुर्ग पर थे जो लगातार गीता पड़ रहे थे और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे. अचानक नवयुवक ने उनको चुनौती दी की भगवान् नहीं होते तो फिर आप ये सब झूट कब तक मानते रहेंगे, जो है वो सब विज्ञानं है. वो बुजुर्ग बहुत देर तक उस नवयुवक के भगवन के अस्तित्व और विज्ञानं के चमत्कारों के सभी तर्कों को ध्यान से सुंनते रहे. उस नवयुवक ने उनको बताया की वो एक खगोल वैज्ञानिक है और वो सारे गृह के बारे में जनता है, कोई सूर्य चन्द्र भगवन नहीं है. और उसके इसी प्रयोगों से प्रभावित हो कर सरकार उसको एक पुरस्कार भी दे रहे है
फिर करीब दो घंटे बाद जब वो नवयुवक को लगा की वो बुजुर्ग उसकी बातो से प्रभावित नहीं हो रहे तो उसने ये कह के बात ख़तम की जब बीमार होंगे तो विज्ञानं काम आयेगा भगवन नहीं. और इतना कह कर वो सो गया और बुजुर्ग वापस गीता पड़ने में मग्न हो गए.
सुबह बुजुर्ग ने उस नवयुवक को जगाया और बताया की आप को लेने के लिए लोग आये है कृपया तैयार हो जाये वो बाहर इंतज़ार कर रहे है और इतना कह कर उन्होंने मुस्कुरा के विदा ली.
IIT कानपुर में जब पुरुस्कार वितरण कार्यक्रम शुरू हुआ तो इस नवयुवक वैज्ञानिक की खूब तारीफ हुयी और उसको पुरुस्कृत करने के लिए देश से सबसे वरिष्ठ वैज्ञानिक को मंच पर बुलाया गया. जब वो वरिष्ठ वैज्ञानिक मंच पर आये तो उस नवयुवक की आंखे फटी की फटी रह गयी. अरे ये तो वही बुजुर्ग है जो कल उसके साथ यात्रा कर आरहे थे. और वो गीता की तारीफ कर रहे थे. वो नवयुवक तुरंत उनके पैरो में गिर पड़ा और अपने लिए माफी मांगने लगा, और पूछा की सर अब आप बताइए आप ने कल मेरा विरोध क्यो नहीं किया.
बुजुर्ग ने कहा , बेटा मैं भी ठीक ऐसा ही था, पर धीरे धीरे प्रयोग करते करते मुझे अहसास हुआ की ऐसे कुछ प्रशन है जिनका उत्तर कभी विज्ञानं नहीं खोज सकता और वो एक अद्रश्य शक्ति द्वारा संचालित है. तभी से मुझे समझ में आया की जब सारी विज्ञानं ख़तम होती है वहा ईश्वर शुरू होता है ।