आचार्य बालक्रष्ण – गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुडने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढोतरी होने लगती है । इसलिये जीवन मैं योग जरूरी है
घ्रणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है कि जिससे मैं घ्रणा करता हूँ कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घ्रणा न करना शुरु कर दे ।
निन्दक दूसरों के आर-पार देखना पसन्द करता है, परन्तु खुद अपने आर-पार देखना नहीं चाहता ।
असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंजिल नहीं मिलती ।
मेरे पूर्वज, मेरे स्वाभिमान। और उनका सम्मान मेरा स्वाभिमान है
गुणों की बृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है । जबकि सज्जन व कर्मशील व्यक्ति तो यह जानता है कि शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक जोर से बोलते हैं । अत: वह अपने शुभकर्म में ही निमग्न रहता है ।
जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है ।
आयुर्वेद हमारी मिट्टी हमारी संस्कृति व प्रक्रति से जुडी हुई निरापद चिकित्सा पध्दति है ।
शरीर स्वस्थ और निरोग हो तो ही व्यक्ति दिनचर्या का पालन विधिवत कर सकता है, दैनिक कार्य और श्रम कर सकता है ।
आयुर्वेद वस्तुत: जीवन जीने का ज्ञान प्रदान करता है, अत: इसे हम धर्म से अलग नहीं कर सकते । इसका उद्देश्य भी जीवन के उद्देश्य की भांति चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति ही है ।
आनन्द प्राप्ति हेतु त्याग व संयम के पथ पर बढना होगा । जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है
जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, गलत कार्यो से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है। और सभी के साथ उसकी संगति अच्छी रहती है
Sagar