मुक्ति और लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है ? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते हैं , इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता है, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते हैं । लेकिन सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, और वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। जिससे इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति और लाभ पाने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो पाने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करना चाहिए।
जो महापुरुष प्रचार के कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत की सहायता करने मैं सक्छम होते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है – अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्ति सम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत को शिक्षा प्रदान करता है ।
जब मनुष्य अपने इशी जीवन में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हज़ारों वर्ष का काम करना पड़ता है। जिससे वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं और वो मुक्ति प्राप्त नहीं पाते हैं ।
जो भी सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहते हो – उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत होने दो। सत्य की ज्योति हमेसा ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, जिससे बह जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।
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