हनुमानजी ने कैसे विभीषण को अपने पक्ष में किया था

अपने व्यवसायिक या ऑफिस की प्रतिस्पर्धा में सभी लोग यह नहीं जान पाते हैं कि कौन अपना है और कौन पराया। लेकिन कई बार शुभचिंतकों का त्याग हो जाता है और दुश्मन को गले लगा लिया जाता है। पर जो लोग ये मानते हैं कि व्यवसायिक रिश्ते एक निश्चित समय सीमा तक ही जीवंत रहते हैं तो वे शायद गलत होते हैं।

क्योकि व्यवसायिक रिश्ते ऐसे टिक सकते हैं लंबे समय तक
व्यवसायिक रिश्तों में भी अपने और पराए की पहचान हो जाए, रिश्ते में थोड़ा प्रेम और विश्वास बनाए रखें तो ये रिश्ता भी निजी रिश्तों की तरह लंबे समय टिका रह सकता है। जिससे आज की व्यवस्था में ऐसा करना थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन समझदारी से काम लिया जाए तो अपने प्रतिस्पर्धी टीम से भी अपने लोग चुने जा सकते हैं। अपने अनुभव और प्रतिभा से ऐसे लोगों को पहचानने और फिर अपने व्यवहार से उनका विश्वास जीतने की आवश्यकता है।

कैसे हनुमानजी ने विभीषण को अपने पक्ष में लिया था
रामायण के सुंदर कांड में हनुमान सीता को खोजने के लिए लंका पहुंच गए। और बो समुद्र लांघकर, अनेक राक्षसों का सामना करते हुए लंका पहुंचे, लेकिन थके नहीं। हमारा व्यवसायिक जीवन भी ऐसा ही है, हम थोड़े प्रयासों में ही थक जाते हैं, और बुद्धि विचलित होने लगती है। हम हनुमानजी के सुंदर कांड से सीख सकते हैं कि अगर अपनी बुद्धि को स्थिर कर लिया जाए तो दुश्मनों के शिविर यानी प्रतिस्पर्धी टीम में भी अपने लोग तैयार किए जा सकते हैं।
सीता को खोजते-खोजते हनुमानजी विभीषण के घर तक पहुंच गए और इस प्रकार उन्हें सफलता हासिल हुयी। हनुमान जी ने कुछ चिह्नों से ही जान लिया कि यहां जो व्यक्ति रहता है, वह श्रीराम के काम आ सकता है। और उन्होंने विभीषण से मित्रता की। उसे भरोसा दिलाया कि श्रीराम अपनी शरण में आने वाले को पूरे स्नेह से रखते हैं। हनुमानजी ने विभीषण को अपनी प्रेमभरी भाषा में एक मौन निमंत्रण दे दिया, श्रीराम की शरण में आने का। विभीषण जो अभी तक लंका में उपेक्षित से थे, उन्होंने भी ये बात समझ ली।
विभीषण और हनुमानजी के बीच एक रिश्ता बन गया। जिससे उनमे प्रेम उपजा, विश्वास दृढ़ हुआ और विभीषण ने लंका छोड़कर श्रीराम की शरण ली। श्रीराम ने भी हनुमान के विश्वास को पूरी तरह बनाए रखा। विभीषण से मिलते ही उसका राजतिलक कर दिया। मित्र बना लिया।

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