हमारे अन्दर उदारता और संयम का वक्त होना चाहिए। जो लोग आज सार्वजनिक जीवन में सक्रिय, पारिवारिक जीवन में समर्पित, धार्मिक जीवन में गतिशील हैं और राजनीतिक जीवन में कुछ मुकाम पाना चाहते हैं तो उन्हें इन दो शब्दों को गहना बनाकर आचरण में उतारना ही पड़ेगा अन्यथा सारी दुनिया के साथ हमारा देश भी इसका नुकसान उठाएगा। और उदारता मनुष्य के भीतर सेवाभाव लाती है, और हमारे अन्दर की हिंसा को दूर करती है। उदारता से परहित होता है और संयम से जीवन की अति समाप्त हो जाती है, इसलिए हम भोगी होने से बच जाते हैं। इन दो बातों से अहंकार, क्रोध सब काबू में आ जाएंगे। आजकल जिसे देखो वह या तो अहंकार में डूबा है या क्रोध से घिरा हुआ है।
क्योकि बल, धन, रूप और पद इन चारों का अहंकार एक दिन गिरना ही है। अगर बलवान को एक दिन शरीर साथ देगा। रूपवान का रूप समाप्त हो जाएगा। कोई भी पद पर सदैव बैठा नहीं रह सकता है और धन बहता ही रहता है। लेकिन लोग फिर भी अहंकार करते हैं, यह उनकी मूर्खता होती है। ऐसे लोग बहुत अधिक दिन तक नहीं टिक पाते हैं। इन सबसे ज्यादा खतरनाक है धर्म का अहंकार। धर्म का अहंकार बढ़ता ही जाता है। मेरे शास्त्र, मेरे धार्मिक स्थल, मेरी साधना.. ‘मैं और मेरे’ का भाव बढ़ता ही जाएगा और इस कारण आज भी हिंसा हो रही है, इसलिए उदारता और संयम का पाठ श्रीकृष्ण की शैली में समझाना ही होगा। कृष्ण जी कहते थे ये दो बातें सिखाने के लिए किसी को दंड देना पड़े तो दे दीजिए, क्योंकि उसी दंड में क्षमा छिपी होती है, इसलिए जिनके पास अधिकार हैं, जो योग्य हैं, वे स्वयं उदारता व संयम बरतें और दूसरों को यह सिखाने के लिए एक सख्त अनुशासन बनाए रखें।