अपेक्षा ही अशांति का कारण है, लेकिन यह स्वाभाविक है कि मनुष्य ही , मनुष्य से अपेक्षा करेगा। अब फिर जहां संबंध होते हैं, वहां तो अपेक्षा होती ही है। अब एक रिश्ता तो पूरी तरह अपेक्षा पर ही टिका है और वह रिश्ता है पति-पत्नी का। तो शायद इसीलिए इस रिश्ते में तनाव बहुत अधिक होता है। जो लोग समझदार हैं योग्य हैं वे उनसे अपेक्षा रखने वालों को संतुष्ट करने का हुनर जानते हैं। और सभी को संतुष्ट किया भी नहीं जा सकता, इसलिए हमसे अपेक्षा रखने वाले लोग जीवन में आते ही रहेंगे। और वे हमारी जिम्मेदारी के दायरे में भी हो सकते हैं। इनकी संख्या कम हो तब तो बात आसान है पर यदि बड़ी संख्या में ऐसे लोग आपसे जुड़ गए तो फिर सभी को संतुष्ट करना चुनौती बन जाता है।
इसलिए पहला प्रयास तो यह करें कि जो भी कोशिश आप कर रहे हैं, उसमें पूरी तरह ईमानदारी बरतें। अगर सामने वाला संतुष्ट हो रहा है या नहीं, यह अलग बात है पर आप पूरी तरह ईमानदार बने रहें। दूसरी बात संवादहीनता न आने दें और तीसरी बात कोई न कोई मध्यस्थ जरूर रखें। मध्यस्थ व्यक्ति भी हो सकते हैं और व्यवस्था भी हो सकती है। जैसे जैसे लंबे समय तक आप किसी से बात न कर पा रहे हों तो उसे यह गलतफहमी हो सकती है कि आप उसकी उपेक्षा कर रहे हैं। किसी को संतुष्ट करने में यह उपेक्षा भाव बीच में आ ही जाता है। तो प्रयास कीजिए कि आपसी संवाद बना रहे। किसी व्यक्ति या व्यवस्था को मध्यस्थ रखने का मतलब है जैसे किसी से प्रत्यक्ष नहीं मिल सकें तो मोबाइल आदि के माध्यम से संदेश भेजते रहें। कोई व्यक्ति आपके और उसके बीच ऐसा हो, जो इस कार्य को पूरा कर ले। इस थोड़ी-सी सक्रियता से आप उन सभी को संतुष्ट कर सकते हैं और जो आपसे अपेक्षा लगाए बैठे हैं। यह हुनर आपको जीवन में बड़ा काम आएगा, क्योंकि दूसरों को संतुष्ट करना भी एक बहुत बड़ी सेवा होती है।