~ ~ ~जय श्री कृष्ण~ ~ ~
माखनचोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा,घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी।
बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे। श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया। बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा-‘देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना।, घंटी बोली-‘जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी।’ बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया, अपने सखाओं को खिलाया-घंटी नहीं बजी। ख़ूब बंदरों को खिलाया- घंटी नहीं बजी। अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया, त्यों ही घंटी बज उठी। घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई। ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई। सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये।
बाल कृष्ण बोले-‘तनिक ठहर गोपी,तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो, पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ। क्यों री घंटी! तू बजी क्यो? मैंने मना किया था न।’ घंटी क्षमा माँगती हुई बोली-‘प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया, मैं नहीं बजी। आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया, मैं नहीं बजी, किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था,मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु! मंदिर में जब पुजारी भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं। इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी।’
इधर गोपी ने बालकृष्ण को रस्सी से बाँधना शुरू किया। इतने कोमल बाल कृष्ण कि रस्सी बार बार उनके तन पर से फिसल जाये। गोपी बड़ी देर तक निष्फल प्रयास करती रही। अंत में बाल कृष्ण बोले-‘ ला गोपी मो़य दे रस्सी, मैं बताँऊ तुझे कि कैसे बाँधते है। ला अपने हाथ इधर कर।’ ‘हाँ लाला बता मुझे, इसके बाद तुझे बाँधूँगी’- प्रफुल्लित गोपी ने सीखने के लिये तुरन्त दोनों हाथ आगे कर दिये और चतुर बाल कृष्ण ने गोपी के दोनों हाथों पर कस कर रस्सी लपेटी और एक के एक कई गाँठें लगा दीं और मुस्करा कर बोले-‘सीख गई न।’
गोपी बोली-‘हाँ लाला सीख गई, अब मुझे खोल दे।’ बाल कृष्ण बोले-‘इतनी जल्दी कैसे सीख गई। अब बँधी रह तब सीखेगी कि बाल कृष्ण को पकड़ने की सोचने का भी परिणाम क्या होता है। जो मुझे पकड़ने की सोचता मैं उसे अपने हाथों से अपने प्रेम में इसी प्रकार बाँध देता हूँ। और गोपी को ठेंगा दिखा कर हँसते-खिलखिलाते अपनी ग्वाल-मंडली मैं जाकर अपने सारे करतब सुनाने लगे।
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